मंजिल सामने है || Rssb|| 2020 || shabad ||


*मंजिल सामने है*
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एक बार एक सन्यासी संत के आश्रम में एक व्यक्ति आया. वह देखने में बहुत दुखी लग रहा था.
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आते ही वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला -“महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ.
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मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से काम करता हूँ, लेकिन फिर भी कभी सफल नहीं हो पाया.
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मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर हँसते हैं. भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया ?”
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स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था. उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम पहले वो सामने दिख रही इमारत तक ज़रा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा.”
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आदमी को यह बात अच्छी तो नहीं लगी परन्तु फिर भी वह कुत्ते को लेकर सैर कराने निकल पड़ा.
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जब वह लौटकर आया तो स्वामी जी ने देखा कि आदमी बुरी तरह हाँफ रहा था और थका हुआ सा लग रहा था.
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स्वामी जी ने पूछा – “अरे भाई, तुम ज़रा सी दूर में ही इतना ज्यादा कैसे थक गए ?”
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आदमी बोला – “मैं तो सीधा सादा अपने रास्ते पर चल रहा था परन्तु ये कुत्ता रास्ते में मिलने वाले हर कुत्ते पर भौंक रहा था और उनके पीछे दौड़ रहा था. इसको पकड़ने के चक्कर में मुझे भी दौड़ना पड़ता था इसलिए ज्यादा थक गया…”
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स्वामी जी बोले – “यही तुम्हारे प्रश्नों का भी जवाब है. तुम्हारी मंज़िल तो उस इमारत की तरह सामने ही होती है लेकिन तुम मंज़िल की ओर सीधे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और इसीलिए मंज़िल तुमसे दूर ही बनी रहती है.
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यदि तुम अपने पड़ोसी और रिश्तेदारों की बातों पर ध्यान न देकर केवल अपनी मंज़िल पर नज़र रखोगे तो कोई कारण नहीं कि वह तुम्हें न मिले.”
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आदमी की समझ में बात आ गई थी. उसने स्वामी जी को प्रणाम किया और वहाँ से चल पड़ा..!!
    *राधास्वामी जी*
       

एक गुरू का दास || RSSB ||2020|| Radha Soami Beas

एक गुरू का दास रोज गुरू के द्वार पर जा कर रोज गुरू को पुकारा करता था लेकिन गुरू के दर्शन नहीं कर पाता था इसलिए वह हमेशा यही सोच कर चला जाता था कि शायद मेरी भक्ति भाव में कुछ कमी है इसलिए वो हर रोज बहुत ही प्रेम भाव से प्रभु के नाम का जाप करता और गुरू के दीदार किये बिना ही चला जाता था बहुत दिनों तक यह चलता रहा ,,,
एक दिन गुरू के दास से रहा नहीं गया उसने गुरू जी से पूछा कि गुरू जी ये आपके दर्शनों के लिए रोज सच्चे मन से आता है और आपको पता भी होता है तो आप इसको अपने दर्शनों से निहाल क्यों नहीं करते तो गुरू महाराज कहते हैं कि उससे ज्यादा तड़फ मुझे है मिलने की लेकिन जिस प्रेम भाव से वो प्रभु का नाम लेता है मैं छुप कर उसकी अरदास को सुनता रहता हूँ सिर्फ इसी डर से कहीं मेरे दर्शनों के बाद वो नहीं आया तो ऐसी प्रेम भरी अरदास कौन सुनाएगा मुझे इसकी अरदास बहुत अच्छी लगती है इसलिए मैं छुप कर सुनता रहता हूँ।

"ये जरूरी नहीं कि हम रोज गुरू के चरणों में अरदास करते हैं तो गुरू हमारी सुनते नहीं हो सकता है कि गुरू को हमारी अरदास पसंद हो इसलिए बार बार सुनना चाहते हैं सतगुरू जी हमारी हर मोड़ पर संभाल करते हैं इसलिए हर हाल में जैसा भी वक्त हो हमें हर पल शुक्रराना करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए"।
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नाम की कमाई

नाम की कमाई
        *एक गांव में एक नौजवान को सत्संग सुनने का बड़ा शौक था परम संत तुलसी दास का सत्संग..
        किसी से पता चला कि गांव के बाहर नदी के उस पार परम संत ने डेरा लगाया हुआ है और आज उनका शाम को 5:00 बजे का सत्संग का प्रोग्राम है..
        वह नदी पार करके नौका के द्वारा सत्संग में पहुंच गया! प्रेमी था बड़े प्यार से सत्संग सुना और बड़ा आनंद माना!
         जब जाने लगा थोड़ा अंधेरा हो गया।देखा तूफान बहुत ज्यादा था और बारिश के कारण नदी बड़े तूफान पर चल रही थी..
     अब जितनी नौका वाले मल्हाह थे,सब डेरे में रुक गए!कोई नौका आने जाने का साधन नहीं है
         संत के पास पहुंचा और बोला-महाराज मेरी नई नई शादी हुई है,मेरी पत्नी भी इस गांव में अनजान है,हर इंसान से और घर में मेरे कोई नहीं है
        मेरे पास गहना वगैरा बहुत है,नकदी भी है और हमारा गांव है,उसमें चोर लुटेरे भी बहुत हैं,तो किसी भी हालत में मुझे वहां जाना ही पड़ेगा नहीं तो पता नहीं क्या हो जाएगा..?
       तुलसी दास ने एक कागज पर कलम से कुछ लिखा और बिना बताए उस पेपर को फोल्ड किया और उसके हाथ में पकड़ा दिया और कहा,इसको खोलकर मत देखना कि इसमें क्या लिखा है।जब नदी के पास पहुंचो तो नदी को मेरा संदेश देना।
         जब नदी के किनारे पहुंचा देखा तूफान बड़े जोरों का है। इसने चिट्ठी नदी की ओर दिखाते हुए कहा यह तुलसी दास ने तुम्हारे लिए भेजी है।
         इतना सुनते ही नदी बीच में से अलग हो गई और ज़मीन दिखने लगी। पैदल चलने के लिए।यह बड़ा हैरान हुआ!
        इसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ,इसने आंखें मलीं,सोचा कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं? फिर पैदल नदी पार करने लगा..
         मन में जिज्ञासा उठी, देखूं तो सही इस चिट्ठी में लिखा कया है ?जब उसने चिट्ठी खोली तो उसमें लिखा था "राम"
     बड़ा हैरान हुआ,इतने में नदी वापस भर गई और रास्ता बंद हो गया और यह दौड़कर फिर वापस किनारे पर आ गया..
       उसी समय तुलसी दास के पास पहुंचा और तुलसी दास को सारी बात कहकर सुनाई,तो तुलसी दास ने कहा-भाई मैंने पहले ही कहा था,कि चिट्ठी खोलना नहीं,खैर उसी समय दूसरी चिट्ठी दी और कहा इस चिट्ठी को खोलना नहीं और वैसे ही करना.
       यह बड़ा हैरान था। तुलसी दास से पूछा महाराज चिट्ठी पर तो राम लिखा था,तो इसमें अलग क्या है
         राम तो हर कोई लिखता है,पढ़ता है।तो संत ने फरमाया एक राम वो है,जो लोग पढ़ते हैं,सुनते हैं,लिखते हैं,और यह मेरा अपना राम है..
      जो मैंने सारी जिंदगी "भजन सिमरन" करके कमाया है
         तो साधुसंगत जी जो गुरु का दिया"नाम"है,वो आपको हर जगह मिल जाएगा लिखा हुआ,लेकिन जो उन्होंने हमें दिया है उसमें'पावर'है,वह उन्होंने कमाया है उनका निजी खजाना है..और जब हम अभ्यास करते हैं,तो इसी खजाने को बढ़ाते हैं..
     हजूर फरमाया करते थे, संगत जो है मेरी फुलवारी है।हर भजन करने वाले से खुशबू आती है। हमे सिमरन भजन करके इसे बढ़ाना है.पर हम अज्ञानी इसे बढ़ाने की बजाय संसारी वस्तुओं को बढ़ा रहे है जो सब यही रहने वाला है
         राम  राम  करता  सब  जग  फिरे  राम  ना  पाया  जाए..!!
  

पिछले जन्म की सेवा का फल 70 || Radha Soami G|| Rssb 2020 ||

*पिछले जन्म की सेवा का फल*

चौथे पातशाही "श्री गुरु राम दास" जी महाराज के समय जब अमृतसर मै श्री हरिमंदिर साहब जी की सेवा चल रही थी। उस वक्त बहुत संगत सेवा कर रही थी। उस संगत में उस समय का राजा भी सेवा के लिए आता था। गुरु साहिबान उस राजा को देख कर मंद मंद मुस्कुराते रहते थे। ऐसा लगातार तीन-चार दिन होता रहा। फिर एक दिन राजा गुरू साहिबान के पास चला गया। और उसने गुरु साहिबान से पूछा :

       *हे सच्चे पातशाह ! आप हर रोज मुझे देख कर मुस्कुराते है क्यों भला...... ?*

तब गुरु साहिबान ने बङे प्यार से  राजा की तरफ देखा, और उन्हें  एक छोटी सी बात सुनाई।"हे राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक दिन संगत इसी तरह सेवा कर रही थी। पर उस सेवा में कुछ दिहाडी़  दार मजदूर भी थे। जो संगत निष्काम भावना से सेवा करती थी।  उन सारी संगत को गुरू साहिबान, शाम को दर्शन देते थे। एक दिन उस दिहाङीदार मजदूर ने सोचा कि क्यों ना मैं भी बिना दिहाड़ी के आज सेवा करूं।निष्काम सेवा करु। उसने यह बात अपने परिवार से की। परिवार ने कहा कोई बात नहीं, आप सेवा में जाओ। एक दिन हम दिहाड़ी नहीं लेंगे। भूखे रह लेंगे, लेकिन एक दिन हम सेवा को जरूर देंगे। उस समय मजदूर दिन में जो मजदूरी करके कमाता था। उसी से घर चलता था।   

यह बात सुना कर गुरु साहिबान चुप कर गए। यह सुन कर राजा सोच में पड़ गया। और हाथ जोड़कर गुरु साहिबान से प्रार्थना की :  हे सच्चे पातशाह ! लेकिन आप मुझे देख कर मुस्कुराते हैं, इसका क्या राज है.....?

*गुरु साहिबान ने फिर मुस्कुराते हुए, उसको जवाब दिया : हे राजन! पिछले जन्म में वो मजदूर तुम थे। यह सुनकर राजा अचेत  सा हो गया। कि उस एक दिन की सेवा का मुझे यह फल मिला कि, इस जन्म में मुझे राजा का जन्म मिला।*

*सेवा का फल, एक ना एक दिन जरूर मिलता है। सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। चाहे ज्यादा की गई हो चाहे थोङी। जो सेवा हम हृदय से निष्काम भाव से करते हैं। वह हमारे लेखे मै लिखी जाती है।और उसका फल हमें जरूर मिलता है। निष्काम की गई सेवा का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। इसलिए हमें भी निष्काम भावना से सेवा करनी चाहिए। ताकि वह सेवा मालिक के दरवार मै प्रवान हो सके।*.   
*राधा स्वामी जी*।   
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श्री रविदास की बुद्धिमत्ता 15वीं शताब्दी में, वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर नामक एक छोटे से गाँव में, रविदास नामक एक विनम्र मोची रहता था। नि...