श्री रविदास की बुद्धिमत्ता


15वीं शताब्दी में, वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर नामक एक छोटे से गाँव में, रविदास नामक एक विनम्र मोची रहता था। निम्न जाति के परिवार में जन्मे, रविदास ने जूते और सैंडल की मरम्मत का काम लगन से किया। अपने विनम्र व्यवसाय के बावजूद, उनका हृदय आध्यात्मिक सत्य और ईश्वर के साथ संबंध के लिए गहरी लालसा से भरा हुआ था।


रविदास एक गहरे आध्यात्मिक व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी सामाजिक स्थिति को अपने मूल्य को परिभाषित नहीं करने दिया। उन्होंने अपना अधिकांश समय ध्यान और भक्ति गायन, भगवान की स्तुति गाने में बिताया। भजन के रूप में जाने जाने वाले उनके गीतों ने उनकी गहरी भक्ति को व्यक्त किया और सभी प्राणियों के लिए आध्यात्मिक समानता और प्रेम के महत्व पर जोर दिया।


एक दिन कबीर नामक एक प्रसिद्ध विद्वान और संत ने सीर गोवर्धनपुर का दौरा किया। कबीर, जो अपनी गहरी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और कविता के लिए जाने जाते थे, उस विनम्र मोची के बारे में उत्सुक थे, जिनके भक्ति गीतों को पहचान मिल रही थी। उन्होंने अपने आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत को समझने के लिए उत्सुक होकर रविदास की तलाश की।


कबीर ने अपने काम में व्यस्त रविदास से संपर्क किया और कहा, "मैंने आपकी भक्ति और आपके गीतों के बारे में सुना है। वे महान आध्यात्मिक सत्यों की बात करते हैं। क्या आप मुझे अपनी समझ का सार बता सकते हैं?


रविदास ने अपने काम से ऊपर देखा और मुस्कुराया। उन्होंने कहा, "आध्यात्मिकता का सार जाति, पंथ या व्यवसाय से बंधा नहीं है। यह भगवान के साथ आंतरिक संबंध के बारे में है, यह अनुभूति कि भगवान हर दिल में निवास करते हैं। मेरी भक्ति मेरे जन्म की जाति में नहीं है, बल्कि भगवान के प्रति मेरे प्रेम की शुद्धता में है।


कबीर रविदास के शब्दों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने महसूस किया कि रविदास की आध्यात्मिकता उनके विनम्र जीवन और उनकी अटूट भक्ति में निहित थी, जो सामाजिक सीमाओं से परे थी। कबीर और रविदास ने आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, और कबीर ने रविदास के ज्ञान की गहराई को पहचाना।


रविदास की शिक्षाएँ अक्सर सभी मनुष्यों की समानता पर केंद्रित थीं। अपने भक्ति गीतों में, उन्होंने कठोर जाति व्यवस्था के खिलाफ बात की और इस बात पर जोर दिया कि दिव्य प्रेम और आध्यात्मिक बोध सभी के लिए उपलब्ध है, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। उनके संदेश कई लोगों के साथ प्रतिध्वनित हुए और उनके अनुयायियों की संख्या में वृद्धि हुई।


रविदास के बारे में सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक उनकी गहरी आध्यात्मिकता और करुणा को दर्शाती है। एक बार, भीषण सूखे के दौरान, गाँव भोजन और पानी की कमी से जूझ रहा था। हालांकि रविदास खुद गरीब थे, लेकिन उन्होंने जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए अपना सब कुछ दिया। उनके निस्वार्थ कार्य ने दूसरों को योगदान करने और जो कुछ भी वे कर सकते थे उसे साझा करने के लिए प्रेरित किया।


चमत्कारिक रूप से, मानो दिव्य कृपा से, गाँव के पास एक नदी प्रकट हुई, जो पानी और जीविका प्रदान कर रही थी। इस चमत्कार को देख रहे ग्रामीणों ने इसे भगवान के साथ रविदास के गहरे संबंध और उनके अटूट विश्वास के प्रमाण के रूप में देखा। वे समझ गए कि उनकी भक्ति और निस्वार्थ कार्यों ने उनके समुदाय को दिव्य आशीर्वाद दिया है।


रविदास की विरासत उनकी कविताओं और भक्ति गीतों से चिह्नित है, जो पूरे भारत और उसके बाहर के लोगों को प्रेरित करते हैं। उनका जीवन भक्ति की शक्ति और इस विश्वास का प्रमाण था कि सच्ची आध्यात्मिकता सभी सामाजिक और भौतिक सीमाओं से परे है। उन्होंने भक्ति (भक्ति) की एक समृद्ध परंपरा को पीछे छोड़ दिया जो प्रेम, समानता और प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर की उपस्थिति पर जोर देती है।


आज तक, श्री रविदास को एक ऐसे संत के रूप में सम्मानित किया जाता है जिन्होंने प्रेम, समानता और आध्यात्मिक भक्ति के सिद्धांतों को मूर्त रूप दिया। उनकी शिक्षाएँ उन लोगों को प्रेरित करती रहती हैं जो सच्ची आध्यात्मिकता और करुणा का मार्ग खोजते हैं, उन्हें याद दिलाते हुए कि ईश्वर सभी के भीतर है और प्रेम और भक्ति पूजा के सर्वोच्च रूप हैं।





मंजिल सामने है || Rssb|| 2020 || shabad ||


*मंजिल सामने है*
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एक बार एक सन्यासी संत के आश्रम में एक व्यक्ति आया. वह देखने में बहुत दुखी लग रहा था.
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आते ही वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला -“महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ.
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मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से काम करता हूँ, लेकिन फिर भी कभी सफल नहीं हो पाया.
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मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर हँसते हैं. भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया ?”
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स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था. उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम पहले वो सामने दिख रही इमारत तक ज़रा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा.”
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आदमी को यह बात अच्छी तो नहीं लगी परन्तु फिर भी वह कुत्ते को लेकर सैर कराने निकल पड़ा.
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जब वह लौटकर आया तो स्वामी जी ने देखा कि आदमी बुरी तरह हाँफ रहा था और थका हुआ सा लग रहा था.
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स्वामी जी ने पूछा – “अरे भाई, तुम ज़रा सी दूर में ही इतना ज्यादा कैसे थक गए ?”
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आदमी बोला – “मैं तो सीधा सादा अपने रास्ते पर चल रहा था परन्तु ये कुत्ता रास्ते में मिलने वाले हर कुत्ते पर भौंक रहा था और उनके पीछे दौड़ रहा था. इसको पकड़ने के चक्कर में मुझे भी दौड़ना पड़ता था इसलिए ज्यादा थक गया…”
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स्वामी जी बोले – “यही तुम्हारे प्रश्नों का भी जवाब है. तुम्हारी मंज़िल तो उस इमारत की तरह सामने ही होती है लेकिन तुम मंज़िल की ओर सीधे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और इसीलिए मंज़िल तुमसे दूर ही बनी रहती है.
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यदि तुम अपने पड़ोसी और रिश्तेदारों की बातों पर ध्यान न देकर केवल अपनी मंज़िल पर नज़र रखोगे तो कोई कारण नहीं कि वह तुम्हें न मिले.”
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आदमी की समझ में बात आ गई थी. उसने स्वामी जी को प्रणाम किया और वहाँ से चल पड़ा..!!
    *राधास्वामी जी*
       

एक गुरू का दास || RSSB ||2020|| Radha Soami Beas

एक गुरू का दास रोज गुरू के द्वार पर जा कर रोज गुरू को पुकारा करता था लेकिन गुरू के दर्शन नहीं कर पाता था इसलिए वह हमेशा यही सोच कर चला जाता था कि शायद मेरी भक्ति भाव में कुछ कमी है इसलिए वो हर रोज बहुत ही प्रेम भाव से प्रभु के नाम का जाप करता और गुरू के दीदार किये बिना ही चला जाता था बहुत दिनों तक यह चलता रहा ,,,
एक दिन गुरू के दास से रहा नहीं गया उसने गुरू जी से पूछा कि गुरू जी ये आपके दर्शनों के लिए रोज सच्चे मन से आता है और आपको पता भी होता है तो आप इसको अपने दर्शनों से निहाल क्यों नहीं करते तो गुरू महाराज कहते हैं कि उससे ज्यादा तड़फ मुझे है मिलने की लेकिन जिस प्रेम भाव से वो प्रभु का नाम लेता है मैं छुप कर उसकी अरदास को सुनता रहता हूँ सिर्फ इसी डर से कहीं मेरे दर्शनों के बाद वो नहीं आया तो ऐसी प्रेम भरी अरदास कौन सुनाएगा मुझे इसकी अरदास बहुत अच्छी लगती है इसलिए मैं छुप कर सुनता रहता हूँ।

"ये जरूरी नहीं कि हम रोज गुरू के चरणों में अरदास करते हैं तो गुरू हमारी सुनते नहीं हो सकता है कि गुरू को हमारी अरदास पसंद हो इसलिए बार बार सुनना चाहते हैं सतगुरू जी हमारी हर मोड़ पर संभाल करते हैं इसलिए हर हाल में जैसा भी वक्त हो हमें हर पल शुक्रराना करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए"।
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नाम की कमाई

नाम की कमाई
        *एक गांव में एक नौजवान को सत्संग सुनने का बड़ा शौक था परम संत तुलसी दास का सत्संग..
        किसी से पता चला कि गांव के बाहर नदी के उस पार परम संत ने डेरा लगाया हुआ है और आज उनका शाम को 5:00 बजे का सत्संग का प्रोग्राम है..
        वह नदी पार करके नौका के द्वारा सत्संग में पहुंच गया! प्रेमी था बड़े प्यार से सत्संग सुना और बड़ा आनंद माना!
         जब जाने लगा थोड़ा अंधेरा हो गया।देखा तूफान बहुत ज्यादा था और बारिश के कारण नदी बड़े तूफान पर चल रही थी..
     अब जितनी नौका वाले मल्हाह थे,सब डेरे में रुक गए!कोई नौका आने जाने का साधन नहीं है
         संत के पास पहुंचा और बोला-महाराज मेरी नई नई शादी हुई है,मेरी पत्नी भी इस गांव में अनजान है,हर इंसान से और घर में मेरे कोई नहीं है
        मेरे पास गहना वगैरा बहुत है,नकदी भी है और हमारा गांव है,उसमें चोर लुटेरे भी बहुत हैं,तो किसी भी हालत में मुझे वहां जाना ही पड़ेगा नहीं तो पता नहीं क्या हो जाएगा..?
       तुलसी दास ने एक कागज पर कलम से कुछ लिखा और बिना बताए उस पेपर को फोल्ड किया और उसके हाथ में पकड़ा दिया और कहा,इसको खोलकर मत देखना कि इसमें क्या लिखा है।जब नदी के पास पहुंचो तो नदी को मेरा संदेश देना।
         जब नदी के किनारे पहुंचा देखा तूफान बड़े जोरों का है। इसने चिट्ठी नदी की ओर दिखाते हुए कहा यह तुलसी दास ने तुम्हारे लिए भेजी है।
         इतना सुनते ही नदी बीच में से अलग हो गई और ज़मीन दिखने लगी। पैदल चलने के लिए।यह बड़ा हैरान हुआ!
        इसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ,इसने आंखें मलीं,सोचा कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं? फिर पैदल नदी पार करने लगा..
         मन में जिज्ञासा उठी, देखूं तो सही इस चिट्ठी में लिखा कया है ?जब उसने चिट्ठी खोली तो उसमें लिखा था "राम"
     बड़ा हैरान हुआ,इतने में नदी वापस भर गई और रास्ता बंद हो गया और यह दौड़कर फिर वापस किनारे पर आ गया..
       उसी समय तुलसी दास के पास पहुंचा और तुलसी दास को सारी बात कहकर सुनाई,तो तुलसी दास ने कहा-भाई मैंने पहले ही कहा था,कि चिट्ठी खोलना नहीं,खैर उसी समय दूसरी चिट्ठी दी और कहा इस चिट्ठी को खोलना नहीं और वैसे ही करना.
       यह बड़ा हैरान था। तुलसी दास से पूछा महाराज चिट्ठी पर तो राम लिखा था,तो इसमें अलग क्या है
         राम तो हर कोई लिखता है,पढ़ता है।तो संत ने फरमाया एक राम वो है,जो लोग पढ़ते हैं,सुनते हैं,लिखते हैं,और यह मेरा अपना राम है..
      जो मैंने सारी जिंदगी "भजन सिमरन" करके कमाया है
         तो साधुसंगत जी जो गुरु का दिया"नाम"है,वो आपको हर जगह मिल जाएगा लिखा हुआ,लेकिन जो उन्होंने हमें दिया है उसमें'पावर'है,वह उन्होंने कमाया है उनका निजी खजाना है..और जब हम अभ्यास करते हैं,तो इसी खजाने को बढ़ाते हैं..
     हजूर फरमाया करते थे, संगत जो है मेरी फुलवारी है।हर भजन करने वाले से खुशबू आती है। हमे सिमरन भजन करके इसे बढ़ाना है.पर हम अज्ञानी इसे बढ़ाने की बजाय संसारी वस्तुओं को बढ़ा रहे है जो सब यही रहने वाला है
         राम  राम  करता  सब  जग  फिरे  राम  ना  पाया  जाए..!!
  

पिछले जन्म की सेवा का फल 70 || Radha Soami G|| Rssb 2020 ||

*पिछले जन्म की सेवा का फल*

चौथे पातशाही "श्री गुरु राम दास" जी महाराज के समय जब अमृतसर मै श्री हरिमंदिर साहब जी की सेवा चल रही थी। उस वक्त बहुत संगत सेवा कर रही थी। उस संगत में उस समय का राजा भी सेवा के लिए आता था। गुरु साहिबान उस राजा को देख कर मंद मंद मुस्कुराते रहते थे। ऐसा लगातार तीन-चार दिन होता रहा। फिर एक दिन राजा गुरू साहिबान के पास चला गया। और उसने गुरु साहिबान से पूछा :

       *हे सच्चे पातशाह ! आप हर रोज मुझे देख कर मुस्कुराते है क्यों भला...... ?*

तब गुरु साहिबान ने बङे प्यार से  राजा की तरफ देखा, और उन्हें  एक छोटी सी बात सुनाई।"हे राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक दिन संगत इसी तरह सेवा कर रही थी। पर उस सेवा में कुछ दिहाडी़  दार मजदूर भी थे। जो संगत निष्काम भावना से सेवा करती थी।  उन सारी संगत को गुरू साहिबान, शाम को दर्शन देते थे। एक दिन उस दिहाङीदार मजदूर ने सोचा कि क्यों ना मैं भी बिना दिहाड़ी के आज सेवा करूं।निष्काम सेवा करु। उसने यह बात अपने परिवार से की। परिवार ने कहा कोई बात नहीं, आप सेवा में जाओ। एक दिन हम दिहाड़ी नहीं लेंगे। भूखे रह लेंगे, लेकिन एक दिन हम सेवा को जरूर देंगे। उस समय मजदूर दिन में जो मजदूरी करके कमाता था। उसी से घर चलता था।   

यह बात सुना कर गुरु साहिबान चुप कर गए। यह सुन कर राजा सोच में पड़ गया। और हाथ जोड़कर गुरु साहिबान से प्रार्थना की :  हे सच्चे पातशाह ! लेकिन आप मुझे देख कर मुस्कुराते हैं, इसका क्या राज है.....?

*गुरु साहिबान ने फिर मुस्कुराते हुए, उसको जवाब दिया : हे राजन! पिछले जन्म में वो मजदूर तुम थे। यह सुनकर राजा अचेत  सा हो गया। कि उस एक दिन की सेवा का मुझे यह फल मिला कि, इस जन्म में मुझे राजा का जन्म मिला।*

*सेवा का फल, एक ना एक दिन जरूर मिलता है। सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। चाहे ज्यादा की गई हो चाहे थोङी। जो सेवा हम हृदय से निष्काम भाव से करते हैं। वह हमारे लेखे मै लिखी जाती है।और उसका फल हमें जरूर मिलता है। निष्काम की गई सेवा का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। इसलिए हमें भी निष्काम भावना से सेवा करनी चाहिए। ताकि वह सेवा मालिक के दरवार मै प्रवान हो सके।*.   
*राधा स्वामी जी*।   
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Real story of God || Satsang Beas || Radha Soami G



 Once a farmer became very angry with God!  Sometimes there will be flood, sometimes it becomes dry, sometimes the sun gets very strong, sometimes hail!  Every time, for some reason or other, his crop gets a bit spoiled!
 One day he got very upset and said to God, See God, you are divine, but it seems you do not know much about farming, there is a prayer that one year give me a chance, whatever the weather I want, then you  See how I will fill the granary!  God smiled and said, okay, I will give you the weather as you say, I will not interfere!

 The farmer sowed wheat crop, when he wanted incense, then got sunshine, when water then water!  Strong sun, hail, flood, storm did not allow him to come, the crop grew with time and the farmer was happy because such a crop had not happened till date!  The farmer thought in his mind, now, we will know how to harvest God, we continued to harass farmers for so many years.

 The time for harvesting also came, the farmer went to harvest the crop with great pride, but as soon as the crop started cutting, he sat down with his hands on his chest.  There was no wheat inside even a single earring of wheat, all the earrings were empty from inside, very sad, he said to God, God what happened?

 Then God said-

 This had to happen, you did not give the plants even a slight chance of struggle.  He did not allow them to heat up in the strong sunlight, nor did he allow the storm to hit the hail, he did not even feel any challenge, so all the plants remained hollow, when the storm comes, there is heavy rain and hail falls, the plant with its force  He stands still, he struggles to save his existence and the force that is generated by this struggle gives him strength, energy, and elevates his liveliness.  To undergo Chunotio like to bask, hammer fire beaten, tender is only growing his golden aura, makes it precious

 In the same way even if there is no struggle in life, if there is no challenge, then the man remains hollow, there is no quality in him!  These are the picks that give the sword to the man, make him strong and sharp, if you want to be talented, you will have to accept the choices, otherwise we will remain hollow.  If you want to be bright in life, to be talented, then you will have to face struggle and challenges! *

Satsang live, satsang dera beas live ,

                   सत्संग की तडप या बेचैनी 

        *आज कल सभी के मन में एक ही प्रश्न - संगत कब शुरू होगी? जो भी मिल रहा है यही कहता है की संगत के बगैर बहुत बेचैनी हो रही है। मन नहीं लग रहा है। अजीब सी बैचैनी है जो पहले कभी नहीं थी। ये बेचैनी क्या है? ये बैचैनी क्यों है? और कब से कब तक रहेगी?*

     *एक छोटी सी मछली ने पूछा, यह तड़प या बेचैनी क्या होती है? बड़ी मछली ने उसे नदी के किनारे ढकेल दिया। पानी के बगैर वह तड़पने लगी, छटपटाने लगी। थोड़ी देर में बड़ी मछली ने पानी का एक रेला उस तरफ फेंका और वह मछली फिर नदी के अंदर आ गई। उसे राहत मिली। तब उसे पता चला तड़प किसे कहते हैं बेचैनी किसे कहते हैं? पानी में रहते उसे कभी महसूस नहीं हुआ कि बैचैनी क्या है? पानी के बगैर उसे बेचैनी का अनुभव हुआ।*

       *इसी तरह से कुछ समय के लिए सतगुरु  ने सत्संग बंद करके हमें सत्संग की अहमियत का अनुभव करा दिया हैं। सत्संग से जुड़े रहने पर हमें इसकी कदर महसूस नहीं ही रही थी।*

      *अब हम सत्संग की कीमत व तड़प महसूस कर रहे हैं। सतगुरु  ने कृपा कि इस समय हमें सिमरन के द्वारा निरंकार से जुड़ने का इसकी अनुभूति करने का अवसर दिया। घर बैठे बैठे अपना introspection आत्म निरीक्षण करने का मौका दिया है।*

        *अब सतगुरु   के चरणों में अरदास है सतगुरु जी  जल्द से जल्द इस कोरोना बीमारी को ही नहीं बल्कि अन्य सभी शारीरिक व मानसिक बीमारियों को भी संसार से मिटा दीजिए । सब जगह शांति आए, अमन आए, सुकून आए। सभी स्वस्थ हों। सभी निरोगी हों। सभी सुखी हों। सभी प्यार से मिलजुलकर रहें।*


      *किसी को कोई भी कमी न रहे, खुशी दे दो इतनी कि कोई गमी न रहे।सतगुरु  जी अब सत्संग जल्द से जल्द शुरू करा दीजिए, ताकि हम लोगों के अंदर की बेचैनी, घबराहट व परेशानी दूर हो और सभी आनंद व सुकून महसूस करें।*

*राधा स्वामी जी*
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श्री रविदास की बुद्धिमत्ता 15वीं शताब्दी में, वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर नामक एक छोटे से गाँव में, रविदास नामक एक विनम्र मोची रहता था। नि...